जमशेदपुर/मुंबई. 7.86 लाख करोड़ रुपए के सालाना रेवेन्यू वाले टाटा समूह देश का एक प्रतिष्ठित उद्योग घराना है। इस समूह में तीन साल पहले 24 अक्टूबर 2016 को उस समय बड़ी उथल-पुथल मच गई थी, जब रतन टाटा कैंप और टाटा संस के बोर्ड ने कंपनी के तत्कालीन एक्जीक्यूटिव चेयरमैन साइरस मिस्त्री को अचानक पद से हटा दिया था। जहां एक ओर टाटा समूह ने मिस्त्री पर भरोसे के दुरुपयोग का आरोप लगाया। वहीं, मिस्त्री ने एनसीएलटी के फैसले को नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल (एनसीएलएटी) में 3 अगस्त 2018 को चुनौती दी। उन्होंने टाटा संस के बोर्ड पर कुप्रबंधन व उत्पीड़न का आरोप लगाया था। एनसीएलएटी ने इस कानूनी लड़ाई पर बुधवार को फैसला सुनाया। इसमें अपीलेट ट्रिब्यूनल ने मिस्त्री को कंपनी प्रमुख के पद से हटाए जाने को गलत ठहराया।
साथ ही उन्हें पद पर फिर से बहाल करने आदेश दिया। वहीं, एन चंद्रशेखरन को कंपनी का एक्जीक्यूटिव चेयरमैन बनाए जाने को भी अवैध करार दिया। इस केस में साइरस मिस्त्री का पक्ष वरिष्ठ वकील सी अरयामा सुंदरम ने रखा। वे कहते हैं इस पूरी कानूनी लड़ाई का मुख्य उद्देश्य कंपनी में सही कॉरपोरेट गवर्नेंस, माइनॉरिटी शेयरधारकों के हित सुरक्षित रखना और मैनेजमेंट में पारदर्शिता सुनिश्चित करना था। टाटा संस ने कई ऐसी कंपनियों में निवेश किया है जिन पर उसका पूर्णस्वामित्व नहीं है और उनमें पब्लिक के साथ-साथ माइनॉरिटी शेयरधारकों का पैसा भी लगा है। एनसीएलएटी ने माइनोरिटी शेयरधारकों व मिस्त्री द्वारा उठाए गए कदम को वाजिब करार दिया है। टाटा संस व साइरस ने एक-दूसरे पर क्या आरोप लगाए हैं।
मिस्त्री ने बोर्ड के अन्य मेंबर्स को किया था बाहर
साइरस पर भरोसे के दुरुपयोग और नाजायज फायदा लेने का आरोप
दरअसल साइरस मिस्त्री पर आरोप लगा था कि वह टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (टीसीएस) को नुकसान पहुंचाने की कोशिश कर रहे थे। टाटा समूह के मुताबिक, साइरस मिस्त्री ने टाटा के भरोसे का दुरुपयोग किया और इसका नाजायज फायदा उठाया। वह टाटा ग्रुप की सभी बड़ी फर्मों को अपने कंट्रोल में लेना चाहते थे। इस बारे में टाटा ग्रुप ने प्रेस रिलीज जारी कर कहा था कि मिस्त्री ने पूरी प्लानिंग के साथ बोर्ड के अन्य मेंबर्स को बाहर किया। चार साल में टाटा समूह का एकमात्र प्रतिनिधि बनने के लिए मिस्त्री ने पूरी ताकत झोंक दी। उन्होंने इसके लिए रणनीति बनाई और उसी को अमल में लाया। मिस्त्री के नेतृ्त्व में टाटा समूह के 100 साल पुराने ढांचे को नुकसान पहुंचा है।
मिस्त्री ने कंपनी डायरेक्टर पर वेस्टलैंड घोटाले में शामिल होने का आरोप लगाया था
साइरस मिस्त्री ने कहा था कि टाटा संस के डायरेक्टर विजय सिंह ने अगस्ता वेस्टलैंड घोटाले में अहम भूमिका निभाई थी। टाटा संस के निदेशक विजय सिंह भी अगस्ता वेस्टलैंड डील घोटाले में शामिल है। उसकी भूमिका की जांच होनी चाहिए। यही नहीं, मिस्त्री ने टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (टीसीएस) को लेकर अपने ऊपर लगे आरोपों पर कहा था कि टीसीएस और जेएलआर में उनकी तरफ से कोई योगदान न किए जाने की सारी खबरें गलत हैं। टीसीएस की क्षमता को बढ़ाने के लिए वह मैनेजमेंट के साथ करीब 60 ग्लोबल सीईओ के साथ मिले थे। उनके प्रयासों से टीसीएस ने स्पेशल डिविडेंड दिया था। अमेरिका और यूरोप में टीसीएस कस्टमर समिट में भी हिस्सा लिया था।
मिस्त्री ने रतन टाटा पर आईबीएम के साथ टीसीएस की डील को लेकर साधा था निशाना
मिस्त्री ने रतन टाटा पर आरोप लगाते हुए कहा था कि एक बार वे आईबीएम द्वारा टीसीएस को खरीदने का प्रस्ताव लेकर जेआरडी टाटा से मिले थे। तत्कालीन टीसीएस प्रमुख एफसी कोहली बीमार थे और अस्पताल में भर्ती थे, इसलिए जेआरडी टाटा ने इस डील के बारे में बात करने से मना कर दिया था। जब कोहली को अस्पताल से छुट्टी मिली तो उन्होंने भरोसा दिलाया कि टीसीएस अच्छा काम कर रही है। भविष्य में उसका प्रदर्शन और बेहतर रहेगा। इसे बेचने की कोई जरूरत नहीं है। इस पर जेआरडी ने आईबीएम का ऑफर ठुकरा दिया और टीसीएस रतन टाटा के हाथों बिकते-बिकते बची। साइरस मिस्त्री 1991 में सापुरजी पालोमजी एंड कंपनी के बोर्डमें निदेशक के रूप में शामिल हुए थे। तीन साल बाद उन्हें समूह का प्रबंध निदेशक बना दिया गया था। उनके लीडरशिप में सापुरजी पालोमजी का निर्माण कारोबार दो करोड़ डॉलर
से बढ़कर डेढ़ अरब डॉलर का हो गया था। टाटा संस में निदेशक के अलावा मिस्त्री टाटा एलक्सी और टाटा पावर में भी निदेशक रहे थे। साइरस मिस्त्री निर्माण क्षेत्र के दिग्गज पालोमजी मिस्त्री के छोटे बेटे हैं। उनके परिवार के पास टाटा समूह की 18 फीसदी से अधिक हिस्सेदारी है।
टाटा-मिस्त्री विवाद: तीन साल में कब-क्या हुआ?
- 24 अक्टूबर 2016 सायरस मिस्त्री को टाटा सन्स के चेयरमैन पद से हटाया, रतन टाटा अंतरिम चेयरमैन बनाए गए।
- 25 अक्टूबर 2016 मिस्त्री ने टाटा सन्स के बोर्ड को चिट्ठी लिखी। टाटा ट्रस्ट के प्रबंधन पर दखल का आरोप लगाया।
- 19 दिसंबर 2016 मिस्त्री ने टाटा ग्रुप की सभी कंपनियों के डायरेक्टर पद से इस्तीफा दिया।
- 20 दिसंबर 2016 सायरस मिस्त्री ने एनसीएलटी में याचिका दायर की। टाटा संस पर गलत प्रबंधन का आरोप लगाया।
- 12 जनवरी 2017 एन चंद्रशेखरन टाटा संस के चेयरमैन बनाए गए।
- 6 फरवरी 2017 मिस्त्री टाटा सन्स के बोर्ड में डायरेक्टर पद से हटाए गए।
- 9 जुलाई 2018 एनसीएलटी ने साइरस मिस्त्री की याचिका खारिज की।
- 3 अगस्त 2018 मिस्त्री ने एनसीएलटी के फैसले को एनसीएलएटी में चुनौती दी।
- 24 अगस्त 2018 एनसीएलएटी ने टाटा संस से कहा- मिस्त्री पर शेयर बेचने का दबाव नहीं बनाएं।
- 18 दिसंबर 2019 एनसीएलएटी ने मिस्त्री की बहाली का आदेश दिया।
2 मार्च 2013 को चेयरमैन पहली बार आए थे शहर
29 दिसंबर 2012 को टाटा संस के चेयरमैन बने थे साइरस मिस्त्र
अगस्त 2010 में टाटा संस के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स ने रतन टाटा का उत्तराधिकारी चुने जाने के लिए पांच सदस्यीय चयन समिति गठित की थी। 23 नवंबर 2011 को टाटा संस बोर्ड के निदेशकों व चयन समिति के भारी समर्थन से साइरस पी मिस्त्री को डिप्टी चेयरमैन बनाया। 29 दिसंबर 2012 में उन्हें चेयरमैन बनाया गया। वे 2 मार्च 2013 को बतौर चेयरमैन पहली बार जमशेदपुर आए। संस्थापक दिवस पर रतन टाटा ही अपने साथ उन्हें जमशेदपुर लाए थे। उन्होंने टाटा वर्कर्स यूनियन पदाधिकारियों से साइरस की मुलाकात कराई थी। साइरस मिस्त्री का परिचय कराने के दौरान ही रतन टाटा बिष्टुपुर स्थित उद्यमियों की संस्था सिंहभूम चेंबर ऑफ कॉमर्स गए थे, जहां रतन टाटा ने सवालों के जवाब भी दिए थे। डिप्टी चेयरमैन बनाए जाने के एक हफ्ते बाद मिस्त्री को 83 बिलियन डॉलर वाली टाटा समूह के टाटा इंडस्ट्रीज बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स में शामिल किया गया।
एक-एक करके बढ़ता गया टाटा-मिस्त्री विवाद
60,000 करोड़ रुपए की युद्ध वाहन खरीद व वेल्स्पन डील पर मतभेद
रतन टाटा और साइरस मिस्त्री के बीच विवाद के कई कारण बताए गए। उनमें से एक कारण जो उस समय सामने आया था, उसमें बोर्ड के एक सदस्य ने कहा था कि रतन टाटा ग्रुप द्वारा आर्मी कांट्रेक्ट, जिसमें पैदल सेना के लिए 2,600 युद्ध वाहन खरीदने के लिए 60,000 करोड़ रुपए के कांट्रेक्ट का प्रस्ताव था, से नाखुश थे। टाटा पॉवर, बीएसई और टाटा मोटर्स बीएसई ने इस कांट्रेक्ट के लिए अलग-अलग बोली लगाई। मिस्त्री ग्रुप ने हर कंपनी को पूरे अधिकार देने की बात कही थी। विवाद एक बड़ी वजह टाटा वेल्स्पन डील थी। रतन टाटा के अनुसार साइरस मिस्त्री द्वारा टाटा वेल्स्पन डील को टाटा संस के बोर्ड को न बताना ग्रुप के कानून का उल्लंघन था। इसके अलावा भी वर्किंग कल्चर व एथिक्स को लेकर भी मतभेद थे।
रतन टाटा ने मिस्त्री को हटाने के बाद सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट ट्रिब्यूनल में लगवाए थे कैविएट
रतन टाटा, टाटा संस और टाटा ट्रस्ट ने सुप्रीम कोर्ट, बांबे हाई कोर्ट और नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल में कैविएट दायर किया था। कैविएट का मतलब होता है कि कोर्ट उनका पक्ष सुने बिना स्टे ऑर्डर या कोई फैसला न दे। क्योंकि मिस्त्री को हटाया गया तो उनसे जुड़े सूत्रों ने कहा था कि इसे कोर्ट में चुनौती दे सकते हैं। दूसरी तरफ साइरस की तरफ से भी कैविएट फाइल करने की खबरें आयी थीं। लेकिन उस वक्त उनके आॅफिस ने संबंध में जानकारी होने का खंडन किया था। अंतरिम चेयरमैन की जिम्मेदारी संभालने के बाद रतन टाटा ने एमडी-सीइओ को संबोधित करते हुए कहा था कि बिजनेस पर फोकस करें, बदलाव की चिंता न करें। यह बदलाव थोड़े समय के लिए है, नया व स्थाई लीडर जल्दी आएगा।
रतन टाटा ने 21 साल में ग्रुप का मार्केट कैप 57 गुना बढ़ाया, मिस्त्री ने 4 साल में दोगुना
साइरस के टाटा ग्रुप की कमान संभालने के बाद चार साल में ज्यादातर कंपनियों के स्टॉक्स में बढ़त देखने को मिली थी। इसी दौरान, ग्रुप का कुल मार्केट कैप 4.6 लाख करोड़ से 8.5 लाख करोड़ रुपए के पार पहुंच गया। हालांकि, रतन टाटा के 21 साल के कामकाज के दौरान ग्रुप का मार्केट कैप जहां 57 गुना बढ़ा। रतन टाटा 1991 में टाटा ग्रुप के चेयरमैन बने, तब पूरे ग्रुप का मार्केट कैप 8000 करोड़ रुपए के करीब था। 21 साल के बाद 2012 में साइरस मिस्त्री को कमान देते वक्त वे ग्रुप के मार्केट कैप को 4.6 लाख करोड़ तक ले जा चुके थे।
साइरस की लीडरशिप में बंद हुई थी जमशेदपुर की टायो
टाटा संस के चेयरमैन पद से साइरस पी मिस्त्री को हटाने से टाटा ग्रुप से जुड़ी जमशेदपुर की सभी कंपनियों में हड़कंप मच गया था। इन्हीं के लीडरशिप में शहर की टायो रोल्स मिल्स कंपनी बंद हुई थी। साइरस ने कमान संभालने के दो साल बाद यानि 2014 में बड़ा फैसला लिया था। लखटकिया कार नैनो रतन टाटा की सपनों की कार थी, पर इसे भी बंद कर इसकी कीमत 2 लाख से अधिक कर इसे नया लुक दिया गया। इससे नैनो का कारोबार सिमट गया।
टाटा परिवार से बाहर के दूसरे चेयरमैन थे साइरस
टाटा संस के निदेशक मंडल ने 24 अक्टूबर, 2016 को एक हैरान करने वाला कदम उठाते हुए साइरस मिस्त्री को चेयरमैन पद से बर्खास्त कर दिया था। वे दिसंबर, 2012 में टाटा संस के चेयरमैन बने थे। समूह के 150 साल के इतिहास में मिस्त्री चेयरमैन बनने वाले टाटा परिवार से बाहर के दूसरे व्यक्ति थे। उनके पहले 1934-38 के दौरान टाटा समूह से बाहर के नवरोजी सकलतवाला समूह के चेयरमैन बने थे।
एक्सपर्ट बोले- सुप्रीम कोर्ट में नहीं टिकेगा फैसला
कंपनी मामलों के जानकार जमशेदपुर के अखिलेश श्रीवास्तव के मुताबिक साइरस मिस्त्री को फिर से चेयरमैन बनाने का नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल (एनसीएलएटी) का आदेश पूरी तरह से गलत है। इस आदेश में हर पहलू को ध्यान में रखे बिना ही फैसला सुनाया गया है। उन्होंने कहा कि शेयर के हिसाब से भी साइरस मिस्त्री को चेयरमैन बनाने का आदेश गलत है। क्योंकि टाटा के पास ही कंपनी का 81 प्रतिशत और सापुरजी पलोमजी के पास 18 प्रतिशत ही शेयर है। एेसे में मैजुरिटी शेयर टाटा के पास है। एेसे में उसके पास अधिकार है कि वह चेयरमैन को हटाकर नया चेयरमैन बहाल करे। सिर्फ 18 प्रतिशत शेयर के आधार पर साइरस चेयरमैन नहीं हो सकते हैं। यदि कंपनी के संविधान में भी दोनों परिवार टाटा और मिस्त्री में से किसी को चेयरमैन या डायरेक्टर बनने की बात लिखी गई है तो इसको बदलने का अधिकार भी टाटा के पास है। एनसीएलएटी को चाहिए था कि कंपनी की कुल संपत्ति का आकलन कर 18 प्रतिशत शेयरधारक सापुरजी पलोमजी को उसकी रकम वापस कर उसे टाटा संस से बाहर कर देती तो जायज होता। एनसीएलएटी का यह आदेश की कंपनी को पब्लिक से प्राइवेट लिमिटेड में नहीं बदला जा सकता है, यह पूरी तरह से गलत है। पब्लिक से प्राइवेट करने का कानून ही है। एेसे में यह फैसला सुप्रीम कोर्ट में टिक ही नहीं पाएगा।